ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Friday, November 15, 2024

'कथूं—अकथ' माने 'कहता हूं, वह जो अनकहा है...

'देव दीपावली' पर 'कथूं—अकथ' माने 'कहता हूं, वह जो अनकहा है'
बचपन से ही डायरी लिखता आ रहा हूं—कभी सहज हिंदी में लिखता हूं तो कभी अनायास अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शब्द झरते हैं। 
यह साहित्य और संस्कृति से सरोकारों की मेरी अनुभूतियों का लोक—आलोक है। 
चिंतन—मनन भी इसमें है। 
बहुत सारी बातें—यादें...
"बोधि प्रकाशन" ने इसे प्रकाशित किया है--


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