ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Wednesday, November 27, 2024

जल संस्कृति पर मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान

 मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में 11—12 नवम्बर 2024 को 'जल संस्कृति और साहित्य' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

विश्वविद्यालय के आग्रह पर 12 नवम्बर को जाना हुआ। समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार साझा करते हुए कहा,—'संस्कृति विचार नहीं विश्वास और हमारा आचरण ही तो है। कहें, जीवन जीने का ढंग। जल हमारे शाश्वत जीवन मूल्यों से जुड़ा है। जन्म से मृत्यु तक के तमाम संस्कारों में जल की ही तो अनिवार्यता है! जल शब्द 'जन्म' के ज और 'लय' के ल शब्द से बना है। माने सृष्टि में जीवन और उससे जुड़ी जीवंतता 'लय' का हेतु जल ही है। इसलिए ही कहें, जल है तो जीवन है!'

जल से जुड़ी इस संस्कृति पर और भी बहुत कुछ जो उपजा, साझा किया...











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